सूती होती सत सेज में.....
दोहा:- कबीर सपने रैण के, भयो कलेजे छेक।
जद सोवूं जद दोय जणां, जद जागूं जद एक।।
स्थाई:- सूती होती सत सेज में म्हारी हेली, जागे तो जतन करे।
जद जागूं जद एकली म्हारी हेली, रोय-रोय रुदन करे,
म्हारी हेली, हालो सन्तां रे देश।
लागो भजनां रे वालो नेस म्हारी हेली, हालो सन्तां रे देश।।
पियाजी बिना म्हारे प्राण पड़े म्हारी हेली, जल बिन मछिया मरे।
कोई बताओ म्हारे श्याम ने म्हारी हेली, रंग भर रास रमे,
म्हारी हेली, हालो सन्तां रे देश।।
छोड्यो पीवर छोड्यो सासरो म्हारी हेली, छोड़ दियो रंग भर देश।
पेरण पीताम्बर पेरिया म्हारी हेली, सिर पर भगवोड़ा वेश,
म्हारी हेली, हालो सन्तां रे देश।।
धरा अम्बर बिच चालणो म्हारी हेली, नहीं पवना रो प्रवेश।
पिछमी वाट रे घाट पर म्हारी हेली, एडो दिवानो वालो देश,
म्हारी हेली, हालो सन्तां रे देश।।
नहीं ऊगे नहीं आथवे म्हारी हेली, करोड़ भान परवेश।
'बनानाथ' उण देश रा म्हारी हेली, बार-बार आदेश,
म्हारी हेली, हालो सन्तां रे देश।।
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