।। श्रवण कुमार ।।
दोहा : मात पिता परमात्मा,
ने पति सेवा गुरु ज्ञान,
इनसे हिल मिल चालिये,
अरे भई वो नर चतुर सुजान।
संसार सागर हे अगर,
मात पिता एक नाव हे,
जिसने भी की तन से सेवा,
उसका तो बेडा पार हे,
जिसने दुखाई आत्मा,
वो डूबता वजधार,
मात पिता परमात्मा,
मिलता न दूजी बार हे।
बेटा तो आगे भया,
ने कलजुग बिच अनेक रे,
श्रवण सा संसार में,
भई हुआ न होसी एक।
स्थाई : ओ बेटा श्रवण पाणीड़ो पिलाई,
वन में बेटा प्यास लगी।।
आला लीला बास काटियाँ,
कावड़ लिद्दी बनाय,
मात पिता ने माय बिठाया,
तीरथ करवा लेजाई,
वन में बेटा प्यास लगी,
ओ बेटा श्रवण पाणीड़ो पिलाई,
वन में बेटा प्यास लगी।।
ना कोई हे कुआ बावड़ी,
ना कोई समुंद्र तालाब,
तब श्रवण ने मन में सोची,
कहाँ जल पाऊ मारी माई,
वन में बेटा प्यास लगी
अरे ओ बेटा श्रवण पाणीड़ो पिलाई,
वन में बेटा प्यास लगी।।
लेजारी अब श्रवण चालियो,
आयो सरवर रे पास,
जाय नीर जटोरियो रे,
दशरथ मारियो शक्ति बाण,
वन में बेटा प्यास लगी
अरे ओ बेटा श्रवण पाणीड़ो पिलाई,
वन में बेटा प्यास लगी।।
दशरथ वहा से चालियो,
आयो श्रवण रे पास,
हे विधाता क्या कर डाला,
भान्जा रे मारियो में तो बाण,
वन में बेटा प्यास लगी
अरे ओ बेटा श्रवण पाणीड़ो पिलाई,
वन में बेटा प्यास लगी।।
मरतो श्रवण बोलियों,
रे सुन मामा मारी बात,
अरे अँधा हे मारा मात पिता,
जी वाने पाणीड़ो पिलाई,
वन में बेटा प्यास लगी
अरे ओ बेटा श्रवण पाणीड़ो पिलाई,
वन में बेटा प्यास लगी।।
नहीं श्रवण की बोल कहि छे,
नहीं श्रवण की चाल,
मात पिता तो स्वर्ग सिधाया,
दशरथ ने दिनों वटे श्राप,
वन में बेटा प्यास लगी
अरे ओ बेटा श्रवण पाणीड़ो पिलाई,
वन में बेटा प्यास लगी।।
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