Ganpat Garwa Opra Re Bhajan गणपत गरवा ओंपरा रे


गणपत गरवा ओंपरा रे 

दोहा:- सौ सौ चन्दा ऊगवे, सूरज तपे हजार। 
           इतरा चानण होत भी, गुरु बिन घोर अंधार।।

स्थाई:-  गणपत गरवा ओंपरा रे, सिंवरो भाई संतो। 
             भाव रे सागर में डूबता रे, पद अबके लादो।।
             सतगुरु हेलो मारियो रे, सुतोडा जागो। 
             शूरां पूंरा रो खेलणो रे, कायर होय भागो।।

नदी रे किनारे बैठणो रे, जल पीणो ठाडो। 
वचन गुरां रो मानणो रे, पग धरणो आगो।।

बीज खेतर में बावणो रे, खारस मत वावो। 
किदोड़ी कमाई आड़ी आवसी रे,गाड़ा भर लावो।।

हिरला बणजो हेत रा ओ, हंस दावण हालो। 
मोती समदां नीपजे रे, हंसला रो ठावो।।

धार्मिदास जग हेरियो रे, एतबारो आयो। 
केवूं दीवाना रे देश री ओ, झूठी मत जाणो।।

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