दोहा :- बालपणां में रामदेवजी, मन में एक विचार
मनडे भायो घोड़लो, चढ़ ने करुं सवारी।।
स्थाई :- म्हने
घोड़लियो मंगवाय म्हारी माँ, म्हने घोड़लियो मंगवाय।
घोड़े
चढ़ने घूमण जासूं, घोड़लियो
मंगवाय म्हारी माँ।।
बालपणा में रामदेवजी, हठ कीनो
हद भारी।
ऐसो हठ कीनो रे बालक, सोच रही
माँ थारी।
कीकण इण ने में समझावूं , लाग रही
मन में चिन्ता।।
मैणां दे सुगणा रे साथे, दरजी ने
बुलवावे।
रामदेव रे खातिर कपडे, रो घोड़ो
बणवावे।
दरजी मन में लालच कीनो, भीतर बोद
भरया मारी माँ।।
रंग रंगीलो नेनो घोड़ो, बालक रे
मन भावे।
लीनी हाथ लगाम बापजी, मन ही मन
मुसकावे।
एड लगाई घोड़लिया रे, रामदेवजी
आकाश उड्या।।
जादू रो घोड़लियो म्हारे, दरजी बणा
ने लायो।
माता पिता मन में घबरावे, दरजी कैद
करायो।
दरजी विनती करवा लागो, रामदेवजी
कष्ट हरिया।।
दरजी ने परचो दिखलायो, रामदेव
अवतारी।
दास अशोक सुणावे बाबा, सुन लो
अर्जी म्हारी।
हिवड़ा में संतोष दिरावो, राम
रूणीचे रा धणियाँ।।
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