सत री संगत म्हाने दीजो
स्थाई:- सत री संगत म्हाने दीजो गुरूजी, साध संगत मोहे दीजो जी।
बार बार म्हारी आ ही विनती, आ किरपा
कर दीजो जी।।
साध संगत सुत ब्रह्मा चावे, बड़ा बड़ा ऋषिराई जी।
जो सुख है इण सत री संगत
में, वो सुख सरगां नाँहि जी।।
माता साध पिता मेरा साधु, साधां संग डोलूं जी।
भजन भाव करुं साधां संग, साधां रे मुख बोलूं जी।।
आनंद रूप सदा मन व्यापे, सदा आनंद में झूलूं जी।
पल पल करुं विनती थाने, नाम घड़ी नहीं भूलूं जी ।।
निर्मल नैण वैण ज्यां रा
निर्मल, निर्मल ज्यां रा अंगा जी।
सूर कहे किरपा कर दीजो, उण संतो रा संगा जी।।
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