सब रे स्वारथ वाळा लोग....
दोहाः सुख के संगी स्वारथी,
दुख में रहते दूर ।
कहे कबीर परमारथी,
दुख सुख सदा हुजूर ॥
स्थाई: भाई रे, सब रे मतलब वाळा लोग,
अब मौहे खबर पड़ी ।
भाई रे, सब रे स्वारथ वाळा लोग,
अब मौहे खबर पड़ी ॥
एक डाल दो पंछी रे बैठा,
बोले हरी हरी ।
टूटी डाल ने उड़ गया पंछी,
आ केड़ी प्रीत करी,
अब मोहे खबर पड़ी ॥
जब लग तेल दीए में बाती,
तब लग जोत घणी ।
खुट गया तेल ने बुझ गई बतियाँ,
घोर अंधार भई,
अब मोहे खबर पड़ी ॥
जब लग बैल चले घाणी में,
तब लग सार घणी ।
बूढ़ा हुआ पछे सार नी पूछे,
भटके वो अळी रे गळी,
अब मोहे खबर पड़ी ॥
जे तू चावे जग में जीणो,
भज ले हरी हरी ।
कहत कबीर सुणो भाई साधो,
दुनियाँ है जाळ सूं भरी,
अब मोहे खबर पड़ी ॥
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