मैं तो पुरबियो पूरब देश रो
स्थाई:- मैं तो पुरबियो पूरब देश रो म्हारी हेली,
बोली रे लखे नहीं कोय।
जो म्हारी बोली लखे म्हारी हेली,
भाग पुरबला होय।।
म्हारी मरम रा साधु ना मिल्यो म्हारी हेली,
किण संग करुँ में सनेह।
म्हारी मण्डली रो हरी जन ना मिल्यो म्हारी हेली,
किण संग करुँ में सनेह।।
साधु होया तो क्या हुआ म्हारी हेली,
चहुँ दिश फैली नहीं वास।
हिरदा में बीज कपट भरियो म्हारी हेली,
करे है उगण री आस।।
के तो तिल कोरा भला म्हारी हेली,
के लीजो तेल कढ़ाय।
अध बिचली कूलर बुरी म्हारी हेली,
दोनूं बीन सूं जाय।।
कड़वा पानां री कड़वी बेलड़ी म्हारी हेली,
फल ज्यां रा कड़वा होय।
ज्यां री कड़वाई जद मिटे म्हारी हेली,
बेल बिछेवा होय।।
दव लागी बेली जली म्हारी हेली,
कोई होयो बीज रो नाश।
केवे कबीर सा धर्मीदास ने म्हारी हेली,
नहीं उगण री आस।।
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