आराम के क्या-क्या साथी थे....
स्थाई: आराम के क्या-क्या साथी थे,
जब वक्ता पड़ा तब कोई नहीं।
सब लोग है अपने मतलब के,
दुनियाँ में किसी का कोई नहीं ॥
जब पैसा हमारे पास में था,
तब दोस्त हमारे लाखों थे।
जब वक्त पड़ा वो मुश्किल का,
तब पूछने वाला कोई नहीं ॥
माँ बाप तिरिया और पुत्रवधू,
मतलब के हैं सब ही नाते ।
जब हँसने वाले लाखों थे,
अब रोने वाला कोई नहीं ॥
कल बाग जो था फूलों से भरा,
इठलाती हुई चलती थी हवा ।
उस सम्बल गुल का जिकरा क्या,
है खाक दरेबा कुछ भी नहीं ॥
ए बिन्दु क्यों नाहक रोता है,
तू होगा फना इस बाग में कल ।
रोना तेरा बेकार है सब,
मिट्टी में भरोसा कोई नहीं ॥
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