घट घट में उजियारा साधो....
स्थाई: घट घट में उजियारा साधो,
घट घट में उजियारा रे ॥
पास बसे ओर नजर ना आवे,
बाहर फिरत गिंवारा रे ।
बिन सतगुरु के भेद ना जाणे,
कोटि जतन कर हारा रे ॥
आसन पद्म बाँध कर बैठो,
उलट नयन का तारा रे ।
त्रिकूटी महल में ध्यान लगावो,
देखो खेल अपारा रे ॥
नहीं सूरज नहीं चाँद चाँदनी,
नहीं बिजली चमकारा रे ।
जग मग जोत जगे निशिवासर,
पार ब्रह्म विस्तारा रे ॥
जो योगी जन ध्यान लगावे,
उघड़े मोक्ष द्वारा रे ।
ब्रह्मानन्द सुनो रे अवधू,
वो है देश हमारा रे ॥
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