समय का एक पहिया चलता....
दोहा: समय फूले वनराय,
समय सज्जन घर आवे ।
समय भौम छुट जाय,
समय नर फेर बसावे ।
समय डिगावे पुरूष को,
समय फेर छत्र फिरे ।
बेताल कहे विक्रम सुनो,
समय करे नर क्या करे ॥
सदा रंक नहीं राव,
सदा मरदंग नहीं बाजे।
सदा धूप नहीं छाँव,
सदा इन्दर नहीं गाजे ।
सदा न जौवन थिर रहे,
सदा न काळा केश ।
बेताल कहे विक्रम सुनो,
सदा न राजा देश ॥
सीत हरी दिन एक निशाचर,
लंक लहि वही दिन आयो ।
एक दिन पांडव गये वन में,
एक दिन से फिर छत्र धरायो ।
एक दिन नल तजी दमयन्ती,
एक दिन से फिर राज कमायो ।
सोच प्रवीण कहा करिये,
किरतार विशम्भर खेल रचायो ॥
समय-समय पर होत है,
समय-समय की बात ।
एक समय पर दिन है,
एक समय की रात ॥
स्थाई: समय का एक पहिया चलता है,
समय का एक पहिया चलता है।
उस पहिए के साथ किसी का,
भाग्य बदलता है।
समय का एक पहिया चलता है,
समय का एक पहिया चलता है ॥
लख घोड़ा लख पालकी,
जांके सिर पर छत्र धरे ।
सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र,
नीच घर नीर भरे ।
उन राजा के लाल को देखो,
बिन कफन के जलता है ॥
भरी सभा में द्रोपद सुता को,
लाया अभिमानी।
भीष्म कर्ण द्रोण जा बैठे,
पर एक नहीं मानी।
पाँचू पति द्रोपद के देखो,
बैठे-बैठे जलता है ॥
हाथ जोड़ ने अरज करी,
वो मंदोदरी रानी ।
बार-बार समझाया पर वो,
एक नहीं मानी ।
धर साधु का वेश रावण,
माँ सिया को छलता है ॥
बलख बुखारा बादशाह,
सुल्तान बड़ा नामी ।
सुन बांदी की बात मन में,
हो गई हैरानी ।
रथ पालकियाँ त्याग सभी,
तज राज निकलता है ॥
समय का पहिया एक दिन देखो,
दशरथ के आया ।
सरयू नदी की तीर खड़ा वो,
बाण चलवाया ।
लगा तीर सरवण के देखो,
झट प्राण निकलता है ॥
तुलसी नर का क्या बड़ा और,
समय बड़ा बलवान ।
काबे लूटी गोपियाँ रे,
वहीं अर्जुन वही बाण ।
समय से चलता शशि को देखो,
भाण निकलता है ॥
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