पेड़ पकड़ ने चढ़ म्हारा बीरा
दोहा: हंसा बगुला एक से,
मान सरोवर माँहि ।
बगुला ढिंढोरे माछली,
हंसा मोती खाई ॥
स्थाई: पेड़ पकड़ ने चढ म्हारा बीरा रे,
झमको ने तू मत झेल ।
सत्य वचन री डोर पकड़ ले,
अधर सिंहासन मेले,
ओ साधु भाई ! चलियो आवे नी गेले गेले ॥
एथने मारग में कोई नहीं झेले,
ओ साधु भाई !
चलियो आवे नी गेले गेले ॥
कोयल वाणी बोल म्हारा बीरा रे,
कागा री वाणी हेटी मेल ।
कोयल जाय बागों रे माँय बोले,
ओ कागो तो घर-घर डोले,
ओ साधु भाई, चलियो आवे नी गेले गेले ॥
हंसों री चाली चाल म्हारा बीरा रे,
बुगलों री चाली हेटी मेल ।
हंसो तो जाय चुगे रे निज मोती,
ओ बुगलो तो मछली ने झेले,
ओ साधु भाई, चलियो आवे नी गेले गेले ॥
सिमरथ म्हाने पूरा रे मिलिया,
प्रेम पियालो दियो पी ले।
मंगळो तो सतगुरुसा रे शरणे,
ओ तो अमरापुर में खेले,
ओ साधु भाई, चलियो आवे नी गेले-गेले ॥
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