पियो रामरस प्यासा संतो....
स्थाई: पियो रामरस प्यासा संतो,
पियो रामरस प्यासा रे ।
गगन मण्डल में अमी रस बरसे,
उन्मुन के घर वासा रे ॥
शीश उतार धरे गुरु आगे,
करे नी पदरी आशा रे ।
ऐसा मूंगा अमी बिकत है,
षड् ऋतु बारह मासा रे ॥
मोल करे तो थके दूर से,
तोलत टूटे त्रासारे ।
जीवे, कबहुं न होत विनाशा रे ॥
इण रस काज नृप भया जोगी,
छोड्या भोग विलासा रे ।
सिंहासन धरिया रेवे,
भस्मी लगावे उदियासारे ॥
गोपीचन्द भरतरी पीना,
और कबीर रविदासा रे ।
गुरु दादूसा रे चरण कँवल में,
पी गया सुन्दरदासा रे ॥
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