वन चले राम रघुराई.....
स्थाई:- वन चले राम रघुराई, संग में सीता माँई।
राजा जनक की जाई, राजा जनक की जाई।।
आगे-आगे राम चलत है, पीछे लक्ष्मण भाई।
बीच-बीच में चले जानकी, तीन लोक की माँई।।
राम बिना म्हारी सूनी अयोध्या, लखन बिना ठकुराई।
सीता बिना म्हारी सूनी रसोई, कौन करे चतुराई।।
सावण बरसे भादवो बरसे, पवन चले पुरवाई।
एक वृक्ष के नीचे भीगे, राम लखन सीता माँई।।
रावण मार राम घर आये, घर-घर बँटत बधाई।
सुर नर मुनिजन आरती उतारे, तुलसीदास जस गाई।।
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