Santha Manh Ro Keno Naa Kije Bhajan Lyrics सन्तां मन रो केणो ना कीजे

सन्तां मन रो केणो ना कीजे.....

दोहा:- गरजे अर्जुन इन्द्र भयो, तो गरजे गोविन्द धेनु चराई। 
गरजे द्रोपद्री दासी भई तो गरजे भीम रसोई पकाई। 
गरज बड़ी इण लोक में तो गरज बिना कोई आवे न जाई। 
कवि गंग कहे सुण शाह अकबर तो गरज से घर गुलाम रह जाई।।

स्थाई:- ओ सन्तां ! मन रो केणो ना कीजे,
ओ साधु भाई ! मन रो केणो ना कीजे। 
दव में काठ कितो ही घालो, अग्नि नाँहि पतीजे। 
ओ साधु भाई ! मन रो केणो ना कीजे।।

मन ही महा अनीति कहीजे, बड़ा-बड़ा भूप ठगीजे। 
जोधा जबर हार गया इण सूं , पड्या कैद में सीजे। 
ओ साधु भाई ! मन रो केणो ना कीजे।।


इण मन में एक निज मन कहिजे, जिण रो संग करीजे। 
ऋषि मुनि इण अन्तर मन से, साहब रे घर दीजे। 
ओ साधु भाई ! मन रो केणो ना कीजे।।

मन को मोड़ करे कोय सुगरो, जद थारो मनवो धीजे। 
इड़ा पींगला चले जुगत से, सुकमण रो घर लीजे। 
ओ साधु भाई ! मन रो केणो ना कीजे।।

जीव पीव री दूरी मेटो, जद थारो मनवा धीजे। 
मदन कहे इण मन री मस्ती, भले भाग देखीजे। 
ओ साधु भाई ! मन रो केणो ना कीजे।।
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