हेली चाले तो हरी मिल जाय.....
स्थाई:- हेली चाले तो हरी मिल जाय, गगन पर देशड़लो।
गगन पर देशड़लो।।
अधर धार करता का मेला, शून्य शिखर चढ़ जाय।
तीन लोक पर अमर अखाड़ा, काल न परसे जमराय।।
पाँच तत्व तीनों गुण भेळा, ऊँचा अलख लखावे।
निराकार निरुप ब्रह्म में, सर्गुण सेण मिलावे।।
श्रोता वक्ता दोनों ही थाके, उलझ रहे सुलझाय।
स्वर्ग नरक की राह निराली, भरम्योड़ा ही गोथा खाय।।
पग बिन चले नैण बिन निरखे, परख लिया निरवाण।
चढ़ गयी सुरत अमर धर वासा, मगन भई है पिव जाण।।
पीव मिल्या परमानन्द पाया, सागर बूंद समाय।
रामानन्द रा भणत कबीरा, रज में रज मिल जाय।।
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