भिक्षा देवो नी माता पिंगला (धुन:-कँवारी होती तो पीपल)
स्थाई:- कबीर पैण्डा बहुत किया, दिन में सौ सौ कोश।
पाछे मुड़कर देखिया, गाँव कोश का कोश।।
दोहा:- भिक्षा देवो नी माता पिंगला, जोगी उभो थारे द्वार।।
भेख उतारो राजा भरतरी, पिंगला करे ओ पुकार।।
आज रो दिन खोटो ऊगियो, लागी ओ काळजे कटार।।
मोह रे माया ने मैं तो छोड़ दी, छोड्यो झूठो रे संसार।।
ढोलियो ढलावूं , वादळ महल में, सजूंला सोलहे ही सिणगार।।
धूणी रे धूखावा जंगल माँयने, अंगड़े भभूती ली धार।।
प्रीत पुराणी मत तोड़जो, छोड़ो मति एकलड़ी मझधार।।
सत रा मार्गी ने मत रोकजे, एकर पुत्र पुकार।।
✽✽✽✽✽
स्थाई:- कबीर पैण्डा बहुत किया, दिन में सौ सौ कोश।
पाछे मुड़कर देखिया, गाँव कोश का कोश।।
दोहा:- भिक्षा देवो नी माता पिंगला, जोगी उभो थारे द्वार।।
भेख उतारो राजा भरतरी, पिंगला करे ओ पुकार।।
आज रो दिन खोटो ऊगियो, लागी ओ काळजे कटार।।
मोह रे माया ने मैं तो छोड़ दी, छोड्यो झूठो रे संसार।।
ढोलियो ढलावूं , वादळ महल में, सजूंला सोलहे ही सिणगार।।
धूणी रे धूखावा जंगल माँयने, अंगड़े भभूती ली धार।।
प्रीत पुराणी मत तोड़जो, छोड़ो मति एकलड़ी मझधार।।
सत रा मार्गी ने मत रोकजे, एकर पुत्र पुकार।।
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