स्थाई :- सत्गुरूसा
म्हाने भव सूं तार दियो।
गुरु दाता म्हाने भव सूं तार दियो।।
गुरु दाता म्हाने भव सूं तार दियो।।
जनम हुआ माँ लाड लड़ाया रे, लेई
शरणां सौंप दियो।।
कोड़ी कोड़ी माया खातिर रे, देश
विदेश गयो।।
छिण छिण
उमरिया म्हारी
बीती सारी रे , ईश्वर ने
ही भूल गयो।।
अन्त समय अब मैं पछतायो रे, भव जल
जूंझ रयो।।
कहत कबीर भाई सुणो सब बन्दा
रे, सतगुरु
म्हाने पार करयो।।
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