म्हारो बेड़ो लगा दीजो पार
स्थाई:- म्हारो बेड़ो लगा दीजो पार, सतगुरु जाम्भा जी।
जाम्भाजी ओ जाम्भाजी, जाम्भाजी ओ जाम्भाजी।
भवसागर करा दो पार, सतगुरु
जाम्भा जी।।
थे जाणो घट-घट की, म्हारी नाव भंवर में अटकी।
अटकी ने लगा दीजो पार, सतगुरु जाम्भा जी।।
एक आसरो थांरो प्रभु, और नहीं कोई म्हारो।
थे ही हो तारणहार, सतगुरु जाम्भा जी।।
भगवो वेश है थांरो, थे सब रा कारज सारो।
अब भगत खड़ा थारे द्वार, सतगुरु जाम्भा जी।।
अरज सुणो थे म्हारी, थे भगतां रा हितकारी।
थे विष्णु रा अवतार, सतगुरु जाम्भा जी।।
मुझ पर दया विसारो, गलती थे म्हारी सुधारो।
ओ सरवण करत पुकार, सतगुरु जाम्भा जी।।
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