दोहा:- शबदां मारा मर गया, शबदां छोड्या राज।
जिण जिण शबद विचारिया, वां रा सरिया काज।।
स्थाई:- लागा बाण म्हारे शबद गुरां रा , घायल वे ज्यां री ए बातां।
लागा
शबद म्हारे सेण सतगुरु रा , घायल वे ज्यां री ए बातां हो जी।।
परणी नार पिया गम जाणे , काँई जाणे कँवारी बातां।
बिना विवेक वा फिरे भटकती , इण कारण खावे लातां हो जी।।
पतिव्रता नार भई बुधवंती , वा जाणे पिवजी री बातां।
भिड़िया अंग भरम सब भागा , भूल गई कुबदां री बातां हो जी।।
धरा असमान भले ही डिग जावे , सुख जावे
समदर सारा।
मैं म्हारा पिवजी ने कदे नी
भूलूं , पाव पलक
ने दिन रातां हो जी।।
प्रेम पोल में सतगुरु पोढ़िया , मिलवा री लग रही खातां।
गुरु प्रताप रविदास जी बोले
, तार में
तार मिलाई दाता हो जी।।
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