दोहा : गुरु देवन के देव हो,आप बड़े जगदीश।
बेडी
भवजल बिच में , गुरु
तारो विस्वाविश।।
स्थाई :- आज गुरु आविया जी म्हारे , हिवड़े उठी रे हिलोर।
हिवड़े
उठी रे हिलोर म्हारे, मनडे उठी
रे हिलोर।।
गुरु आवन की ऐसी लागी, जैसे चंद्र चकोर।
चरण कमल में सुरता लागी, ज्यूं
पतंग संग डोर।।
शबद सुण्यां गुरुदेव का, डर गया पाँचूं चोर।
घोर अंधेरो दूर होयो है , रेण गई
भई भोर।।
अब कछु धोखा ना रहा, नाच उठा मन मोर।
सुरत सुहागण निरखण लागी, अपने
पीया की ओर।।
भीखदास गुरु पूरा मिलिया, कुकर्म दीना तोड़।
दास मलूक चरण में लोटे, सुख में
जीव झकोर।।
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