Ek Daal Do Panchi Betha Bhajan एक डाल दो पंछी बैठा

एक डाल दो पंछी बैठा

स्थाई:- एक डाल दो पंछी बैठा, कौन गुरु कौन चेला। 
गुरु की करणी गुरु भरेगा, चेला री करणी चेला रे 
साधु भाई ! उड़ जा हंस अकेला।।

माटी चुन-चुन महल बणाया, लोग कहे घर मेरा। 
ना घर तेरा ना घर मेरा, चिड़िया रैन बसेरा।।

कौड़ी-कौड़ी माया जोड़ी, जोड़ भरे ना थैला। 
कहत कबीर सुनो भाई साधो ! संग चले ना अधेला।।

बागवान ने बाग लगाया, बाग लगाया केला। 
कच्चे पके की मर्म न जानी, तोड़ा फूल कंदेला।

ना कोई आता ना कोई जाता, झूठा जगत का नाता। 
ना काहु की बहन भाणजी, ना कहु की माता।।

ड्योढ़ी तक तेरी तिरिया जावे, खोली तक तेरी माता। 
मरघट तक सब जाये बाराती, हंस अकेला जाता।।

माटी से आया रे मानव, फिर माटी में मिलेला। 
घिस घिस साबुन तन को धोया, मन को कर लिया मैला। 

इस माया नगरी में रिश्ता, है तेरा और मेरा। 
मतलब के संगी और साथी, इन सब ने है घेरा।।

ये संसार कागज़ की पुड़िया, बूंद पड़े गल जाना। 
ये संसार काँटो की बाड़ी, उलझ-उलझ मर जाना।।

क्यों सोया उठ हुआ सवेरा, काल मरेगा सेला। 
कहत कबीर गुरु वाणी गाऊं , झूठा जग का मेला।।

ये संसार खाड़ो जाखड़, आग लगे जल जाना। 
कहत कबीर सुणो भाई साधो ! सतगुरु नाम ठिकाना।।

आम की डाली कोयल राजी, मछली राजी जल में। 
साधु रहे जंगल में राजी, सेठ की राजी धन में।।

काशी के हम वासी कहिये, मेरा नाम कबीरा। 
करणी करके पार उतर गये, लाल वरण कुल हीना।
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