हालो रे दिवाना यहाँ क्यूँ (धुन:- गुरु बिन घोर अंधेरा )
दोहा:- डोरी टूटी असमान से, कोई नहीं सकता झेल।
साधु संतो ने शूरमां, नर अणियाँ ऊपर खेल।।
स्थाई:- हालो रे दिवाना यहाँ क्यूँ बैठा,
आगे तो मौज मजा की है।
साँचा गुरूजी रा साँचा रे चेला,
झूठा ने माया खा गई हो जी।।
सतगुरु दाता सेण बताई,
म्हारी सुरता सुन्दरी जागी है।
अणघड़ फेरा फिरवा ओ लागी,
वां ने पिछम दिशा ले भागी है ओ जी।।
लेयर पिया ने सूती सेज में,
करवट लेकर जागी है।
ओहम सोहम दोई ढोल बजावे,
अरे सूरज उघण ने लागी है ओ जी।।
अष्ट द्वादश जाकर देख्या,
अबे झिलमिल ज्योति जागी है।
त्रिवेणी री घाटी लांघता,
सोहन शिखर गढ़ आ गई है ओ जी।।
शंकर सामी सेण बताई,
असंख जुगां से आगी है।
रामो रे दुर्बल गुरूजी रे शरणे,
म्हारी सूती रे नगरी जागी है ओ जी।।
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