चाले तो ले चालूं वण देश में....
स्थाई:- चाले तो ले चालूं वण देश में म्हारी हेली,
गुणताऊ भेद बताय।।
पतिव्रता पीहर बसे म्हारी हेली, हिरदे पियाजी रो ध्यान।
चार जुगां रो ढोलियो म्हारी हेली, असंख जुगां री वाण।।
गगन मण्डल वाले गोखरे म्हारी हेली, पुरुष सुतो निराकार।
तीन पुरुष वां की सेवा करे म्हारी हेली, राम कबीरा गुण गाय।।
मन रे पवन वटे पहुँचे नहीं म्हारी हेली, नहीं रे भरम को काम।
अलख उतारे उभा आरती म्हारी हेली, निरंजन ढोले वाव।।
केवे कबीरसा धार्मिदास ने म्हारी हेली, वण पुरुष ने ध्याव।
चाले तो ले चालूं वण देश में म्हारी हेली,
गुणताऊ भेद बताय।।
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