अब लौट के आवो जम्भदेव
दोहा:- आवो आवो मैं रटूं, आवो जम्भ गुरु जगदीश।
हिरदा
मेरा पवित्र करो, चरण निवाऊँशीश।।
स्थाई:- आ लौट के आओ जम्भ देव, तुझे तेरे सन्त बुलाते हैं।
उन्तीस नियम गए भूल, तुझे
तेरे संत बुलाते हैं।।
सूना पड़ा है गाँव दीपासर, सूनी डगरिया सारी।
सूना जंगल समराथल रा, भवन जोत जहाँ सारी।
कब आवोगे लोवट जी के लाल, तुझे तेरे संत बुलाते है।।
धरम धजा थांरी झुकने लागी, पाप ने पैर पसारा।
पाप घटा बण बरसण लागी, भरिया पाप रा बेड़ा।
ज्याँ में डूब रहा संसार, तुझे तेरे संत बुलाते हैं।।
चले गए वैकुण्ठपुरी में, सूनी पड़ी जम्भ गीता।
रो रोकर हम तुम्हें पुकारे, जैसे लंक में सीता।
कब धरोगे राम अवतार, तुझे तेरे संत बुलाते हैं।।
काम क्रोध मद लोभ मोह ने, आय चहुँ दिश घेरा।
हाथ कमण्डल धर कर आवो, देवो नाम का सहारा।
गावे जम्भ मंडल गुणगान, मेवाड़ी भजन सुणाते हैं।।
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