दो दिन का जग में मेला.....
स्थाई: दो दिन का जग में मेला,
सब चला चली का खेला रे ॥
कोई चला गया कोई जावे,
कोई गठड़ी बाँध सिधावे ।
कोई खड़ा तैयार अकेला,
सब चला चली का खेला रे ॥
कर पाप कपट छल माया,
धन लाख करोड़ कमाया ।
संग चले ना एक अधेला,
सब चला चली का खेला रे ॥
नारी मात पिता सुत भाई,
कोई अंत सहायक नाँहि ।
क्यों भरे पाप का ठेला रे,
सब चला चली का खेला रे ॥
यह नाशवान संसारा,
कर भजन हरि का प्यारा ।
ब्रह्मानन्द कहे सुन चेला,
सब चला चली का खेला रे ॥
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