थारां सूं मनड़ो लागो रे....
दोहा : कृष्णा थे मत जाणजो,
थां बिछड्या मोहे चैन ।
जैसे जळ बिन माछली,
प्रभु तड़फ रही दिन रैन ॥
स्थाई: पौ फाटी पगड़ो भयो, कानूड़ा लाल,
गवाळिया उचेरी वन में गाय ।
जियो- जियो रे लाल,
गवाळिया उचेरी वन में गाय ॥
दही रो भरियो वाटको कानूड़ा लाल,
गुजरियाँ उपराड़े झाला देय ।
जियो जियो रे लाल,
गुजरियाँ उपराड़े झाला देय ॥
गोकुळ का भोळा कान्ह रे,
मथुरा रा भोळा कान्ह ।
थारां सूं मनड़ो लागो रे,
गोकुळ रा भोळा कान्ह ॥
पौ फाटी पगड़ो भयो कानूड़ा लाल,
मालणियाँ जावे रे बागां माँय।
जियो-जियो रे लाल,
मालणियाँ जावे रे बागां माँय ।
पौ फाटी पगड़ो भयो कानूड़ा लाल,
लावे-लावे हंजारी रा फूल ।
जियो-जियो रे लाल,
लावे-लावे हंजारी रा फूल ॥
रेशम केरो पालणो कानूड़ा लाल,
गूजरियाँ झूलावे झूले श्याम ॥
जियो जियो रे लाल,
गुजरियाँ झूलावे झूले श्याम ॥
पगां बजावे गूंगरा कानूड़ा लाल,
गूजरियाँ नचावे नाचे श्याम ।
जियो- जियो रे लाल,
गूजरियाँ नचावे नाचे श्याम ॥
चन्द्रसखि री वीणती कानूड़ा लाल,
साधुड़ाँ रो अमरापुर में वास ।
जियो- जियो म्हारा कान्ह,
साधुड़ाँ रो अमरापुर में वास ।
गोकुळ का भोळा कान्ह रे,
मथुरा का भोळा कान्ह ।
थारां सूं मनड़ो लागो रे,
गोकुळ का भोळा कान्ह ॥
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