वो महाराणा प्रताप कठे.....
दोहाः जननी जणे तो एड़ा जण,
जेड़ा राणा प्रताप ।
अकबर सूतो ओजके,
जाण सिराणे साँप ॥
जननी जणे तो चार जण,
तू मत जणजे चालीस
चारूं रण में जूंझता,
वे चारों है चालीस ॥
शूर न पूछे टीपणो,
सुगन न देखे शूर ।
मरणा ने मंगळ गिणे,
ज्यां रे मुख पर बरसे नूर ॥
स्थाई: मायड़ थारो वो पूत कठे,
वो मेवाड़ी सिरमोर कठे,
वो महाराणा प्रताप कठे।
हल्दीघाटी में समर लड्यो वो,
चेतक रो असवार कठे ॥
मैं बांच्यो है इतिहासां में,
मायड़ थें एड़ा पूत जण्या ।
थनपान लजायो नी थारो,
रणधीरा वे सरदार बण्या |
बैर्यां रे मन सूं बादीला,
सारा पड़ ग्या उण रे आगे।
वो झुक्यो नहीं नर नाहरियो,
अकबर री सेना रे आगे।
हिन्दवा सूरज मेवाड़ रतन,
वो महाराणा प्रताप कठे ॥
आ माटी हल्दीघाटी री,
लागे केशर और चन्दन हैं।
माथा पे तिलक करो इण रो,
इण माटी ने नित वंदन हैं।
आ रण भूमि तीरथ भूमि,
दर्शन करवा मन ललचावे ।
उण वीर शूरमां री यादां,
हिवड़ा में जोश जगा जावे।
उण स्वामी भक्त चेतकरी,
टापां री आज आवाज कठे ॥
भाई शक्ति बैऱ् या सूं मिळ,
भाई सूं लड़वा ने आयो ।
राणा रो भायड़ देख-देख,
शक्ति सिंह भी है शरमायो ।
ओ नीला घोड़ा रो असवार,
थे रूक जावो थे रूक जावो ।
चरणां में आय पड्यो शक्ति,
बोल्यो कर मैं तो पछतायो।
वेगळे मिल्या भाई-भाई,
ज्यू राम भरत रो मिलण वठे ॥
संकट रा दिन देख्या जतरा,
वे आज देख कुण पावेला ।
राणा रा बेटा बेटी वे,
रोटी घास री खावेला ।
ले संकट ने वरदान समझ,
वो आजादी रो रखवालो ।
मेवाड़ भोम री पथ राखण,
वो कदे भलां झुकवा वालो ।
चरणां में धन रो ढेर कियो,
दानी भामाशाह आज कठे ॥
वट वृक्ष पुराणो बोल्यो यूं,
सुणलो जावा वाला भाई ।
राणा रा चिन्ह धर्या तन पे,
झाला मन्ना री नरमाई ।
भालो राणा रो काँहि चमक्यो,
आभा में बिजली कड़काई ।
ई रगत खलकता नाळा सूं,
या भरगी रगत तलाई ।
यो दृश्य देख अगवाणी रो,
जगती में ऐसो मिनख कठे ॥
हल्दीघाटी रे टीला सूं,
शिव पार्वती युद्ध देख रया ।
मेवाड़ी वीरां री ताकत,
अपनी निजरां में तोल रया ।
बोल्या शिवजी सुण पार्वती,
मेवाड़ भोमरी बलिहारी ।
जो आछा कर्म करे जग में,
वे अठे जनम ले नर-नारी ।
म्हूं स्वयं एकलिंग रूप धरी,
सदियों सूं बैठ्यो भलां अठे ॥
मानवता रो धर्म निभायो,
भेदभाव नी जाण्यो है।
सेनानायक सूरी हकीम भी,
यूं राणा पुजवायो है।
जात-पात और ऊँच-नीच री,
बात हियां नहीं भाई ही ।
उणी वासते राणा री,
प्रभुता जग में सरसाई ही।
वो सम्प्रदाय सद्भाव भाव री,
मिले मिशाल है आज कठे ॥
कुम्भलगढ़ गोगुन्दा चावण्ड,
हल्दीघाटी और कोल्यारी ।
मेवाड़ भोम रा तीरथ है,
राणा प्रताप री बलिहारी ।
कहे हरिद्वार काशी-मथुरा,
पुष्कर गळता में स्नान करां ।
सब तीर्थां रा फळ मिळ जासी,
मेवाड़ भोम में जद विचरां ।
कवि माधव नमन करे शत्-शत्,
मोती मगरी पर आज अठे ॥
आज देश री सीमा पर,
संकट रा बादळ मंडराया।
ए पाकिस्तानी घुसपैठ्या,
भारत सीमा में घुस आया।
भारत रा वीर जवानां थे,
यांने यो सबक सिखा दीजो ।
थे हो प्रताप रा ही वंशज,
यां ने आ बात बता दीजो ।
ओ काश्मीर भारत रो है,
कुण आँख उठावे आज अठे ॥
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