पियाजी री वाणी मत बोल.....
दोहा: प्रीतम प्रीत लगाय के,
तुम दूर देश मत जाय ।
बसो हमारी नगरी में,
हम मांगे तुम खाय ॥
स्थाई: जो कोई पियाजी री प्यारी सुणे रे,
देवे थारी चोंच मरोड़।
पपइया, पियाजी री वाणी मत बोल ॥
चोंच कटाऊं, पपइया थारी रे,
ऊपर घालूं लूण।
पिवजी म्हारा मैं पियारी,
थुंकुण केवण वालो पपइया,
पपइया, पियाजी री वाणी मत बोल ॥
थारा वचन सुहावणा रे,
पिव-पिव करे है पुकार ।
चोंच मढाऊं थारी सोवणी रे,
थू म्हारे सिर रो मोड़ पपइया,
पियाजी री वाणी मत बोल ॥
म्हारा पियाजी ने पतियां भेजूंरे,
सुध-बुध लेवण आय।
जाय पियाजी ने यूं कहिजे रे,
ब्रेहणी धान न खाय पपइया,
पियाजी री वाणी मत बोल ॥
मीरां दासी व्याकुल भई रे,
पिव- पिव करे है पुकार ।
बेगा मिलो रे म्हारा अन्तर्यामी,
तुम बिन रयो नहीं जाय पपइया,
पियाजी री वाणी मत बोल ॥
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