बोले मेरा सतगुरु अमृतवाणी...
दोहा : सतगुरु ऐसा कीजिए, जैसे लोटा डोर।
गला फ़सावे आपणा, पावे नीर झकोर।।
स्थाई : बोले मेरा सतगुरु अमृतवाणी।
दूधा रा दूध पानी रा पाणी।।
रात नहीं निदरा चैन नहीं मन में।
लागी म्हारे चोट शबद री तन में।।
सतगुरु पुष्प ने में हुँ भंवरा।
हरी ने भजे ज्यारो काँही लेवे जमड़ा।।
सतगुरु वैध खलक सब रोगी।
हरी ने भजे ज्यारो काया निरोगी।।
कहत कबीर सुनो भाई संतो।
घट हिरदे में बिठाया संतो।।
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