जनम लियो ज्यांने मरणो पड़सी
दोहा:- जब तुम जनमे जगत में, जग हँसमुख तुम रोय।
ऐसी करणी कर चलो, तुम हँसमुख जग रोय।।
स्थाई:- जनम लियो ज्यां ने मरणो पड़सी, मौत नगारो सिर कुटे रे।
लाख उपाय करो मन कितरा, बिना भजन नहीं छूटे रे।।
जम राजा रो आयो है झूलरो, प्राण पलक माँहि छूटे रे।
हिचकी चाल हचीड़ो चाले, नाड़ तड़ातड़ टूटे रे।।
जीव लेय जद जमड़ो चाले, क्रोध कर-कर कूटे रे।
गुरजां री घमसाण मचावे, तुरन्त तालवो फूटे रे।।
जीव ले जाय नरक माँहि डाले, कीड़ा कागला चूंटे रे।
भुगतेला जीव भजन बिना भाई, ए जमड़ा जुगां जुग कूटे रे।।
भाई बन्धु तेरा कुटुम्ब कबीला, राम रुठ्यां सब रूठे रे।
कर्मां रा खोटा बंधन थारा, राम भजन सूं टूटे रे।।
राम भजन कर सुकरत कर ले रे, भव रा बन्धन टूटे रे।
कहत कबीर सुख चावे जीव रो, राम नाम धन लूटे रे।।
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