गावतरी रे पाप सूं ओ राज
दोहा:
साखी है गौ मात री,
सब
जन धरजो ध्यान।
चित्त
लगाकर सुणजोथांने,
सन्त
दिरावे आण॥
स्थाईः
अरे जागो भायो नींद सू ओ राज,
एडो
वारो आवेला रे।
गावतरी
रे पाप सूं ओ राज,
इन्दर
रूठ जावेला रे॥
गायों
ने मत मारजो हो राज,
इण
री हाय लागेला रे।
गऊ हाय रे कारणे ओ राज,
सांवरो
रूठ जावेला रे।
गऊ पाप रे कारणे ओ राज,
रामजी
रूठ जावेला रे।
मिनख मजूरी ने जावसी ओ राज,
आपो
आप लड़ेला रे॥
सरवर सूखा होवसी ओ राज,
नाडों
रा नीर सूखेला रे।
गऊ
हाय रे कारणे ओ राज,
इन्दर
रूठ जावेला रे।
अरे
कुआ बावड़ी सूखसी ओ राज,
जळ
रा जोंदा पड़ेला रे।
हरियो वन ढूंठो होवसी ओ राज,
जिण
रा पान झड़ेला रे॥
चलती नदियाँ सूखसी ओ राज,
जिण
में रेत उड़ेला रे।
सूनी
धरती होवसी ओ राज,
अन
रा जोंदा पड़ेला रे।
डूंगरिये दव लागसी ओ राज,
सूरज आग वरेला रे।
अवन-पवन दोय कांपसी हो राज,
गगन
में धूड़ झुरेला रे॥
चेतो म्हारा बांधवा ओराज,
जनमता
बाळ डरेला रे।
अरे दूध बिना वे डूंबड़ा ओ राज,
जगत में जोंदा पड़ेला रे।
सेवा करे जो गाय री ओ राज,
इन्दर
घणो वरेला रे।
लीला लहरों होवसी ओ राज,
सांवरो
कष्ट हरेला रे॥
मुनि
महाराज गुरु बोलिया ओराज,
संत
थोरी साख भरेला रे।
गौ माता थाने तारसी ओ राज,
भव
सूं पार करेला रे।
जोरावर
री वीणती ओ राज,
गायां
दुखड़ो हरेला रे।
मोइनुद्दीन कहे मानजो ओ राज,
थारे सम्पति वेला रे॥
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