जीव तू, मत करना फिकरी.....
दोहा:- फिकर सभी को खा गया, फिकर है सब की पीर।
फिकर की फाकी करे, उसका नाम फकीर।।
स्थाई:- जीव तू, मत करना फिकरी,
जीव तू, मत करना फिकरी।
भाग लिखी सो होय रहेगी, भली बुरी सगरी।।
तप करके हिरणाकुश आयो, वर पायो जबरी।
लौह लकड़ से मरयो नहीं वो, मरयो मौत नख री।।
सहस पुत्र राजा सागर के, तप कीनो अकरी।
थारी मती ने थूं ही जाणे, आग मिली न लकड़ी।।
तीन लोक री माता सीता, रावण जाय हरी।
जब लक्ष्मण ने लंका घेरी, लंका गई बिखरी।।
आठ पहर सायब को रटना, ना करणा जिकरी।
कहत कबीर सुणो भाई साधो ! रहण बेफिकरी।।
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