गुणती खोले ने बारे.....
दोहा:- भक्त बीज पलटे नहीं, जो जुग जाय अनन्त।
ऊंच नीच घर अवतरे, वो रहे संत को सन्त।।
स्थाई:- गुणती खोले ने बारे काढ रे बिणजारा,
राम रे भजवा री वेला जाय।
गुणती खोलूं तो धोखो उपजे मेलागर,
लारे आवे रे थारे वार।।
वार करणिया लारे रह गया बिणजारा,
गया है वे गंगाजी रे घाट।
हँस ने मुलके ने मुड़े बोलजे मेलागण,
हिवड़े पेरावूं नवसर हार।।
ऊंची बेड़ावूं बादल महल में मेलागर,
चुड़लो पेरावूं हस्ती दाँत।
थारे जेड़ा रे हाळी बालदी बिणजारा,
नोखता घोड़लियो वाली लाद।।
सेर-सेर सोनो मैं तो पहरती बिणजारा,
मरती मोतिड़ां भारो भार।
सोना रा पालणा में हींडती बिणजारा,
दासियाँ ढोळती रे वाव।।
मत कर धनवन्ती धन रो गाड रे बिणजारा,
नहीं रे आवेला थारे काम।
घड़ियक झोलो वाजियो बिणजारा,
होगी मैं घर-घर री पणिहार।।
अब तो बिणजारा री बोली छोड़ दे मेलागर,
खोमद के ने बतलाव।
शायर नीर सरीखा दीकरा बिणजारा,
चनण सरीखा भरतार।।
कोई छत्रि वे तो सांभलो भाइडां,
बिणजारे पकड़ी अठे गाय।
झड़ जाई फुलड़ा ने रह जाई वासना रे जुग में,
वेला सतियों रो अमर नाम।।
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