देख तमाशा लकड़ी का
स्थाई:- जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी, देख तमाशा लकड़ी का।
क्या जीवन क्या मरण कबीरा, खेल रचा है लकड़ी का।।
जिस समय तेरा जनम हुआ था, पलंग बना था लकड़ी का।
माता तुम्हारी, लौरी गाती, वो पलना था लकड़ी का।।
पढ़ने चला जब पाठशाला में, लेकर पाटी लकड़ी की।
गुरु ने जब-जब डर दिखलाया, वो डण्डा था लकड़ी का।।
जिस समय तेरा ब्याह रचाया, वो मण्डप था लकड़ी का।
वृद्ध हुआ जब, चल नहीं पाया, लिया सहारा लकड़ी का।।
डोली पालकी और जनाजा, सब कुछ है ये लकड़ी का।
जनम मरण के इस मेले में, है सहारा लकड़ी का।।
उड़ गया पंछी रह गई काया, बिस्तर बिछाया लकड़ी का।
एक पलक में खाक बनाया, ढेर सारा था लकड़ी का।।
मरते दम तक मिटा नहीं भैया, झगड़ा-झगड़ी लकड़ी का।
राम नाम तो हिरदे लगा के, मिट जाए झगड़ा लकड़ी का।।
क्या राजा, क्या रंक, भिखारी, अंत सहारा लकड़ी का।
कहत कबीर सुन भाई साधु, वीणा तंदूरा लकड़ी का।।
✽✽✽✽✽
यह भजन भी देखे
0 टिप्पणियाँ