कंचन वाली काया ए, सैलानी
दोहा:- सूता-सूता क्या करो, ने सूता ने आवे नींद।
काल सिरहाणे यूं खड़ो, ज्यूं तोरण आयो बींद।।
नींद निशाणी मौत की, जागो जपो मुरार।
एक दिन सोणा होवसी, लम्बे पाँव पसार।।
स्थाई:- कंचन वाली काया ए, सैलानी मैं तो पावणा।
एक दिन जावांला, फेर नहीं आवांला।।
बोलो-बोलो अमरित ए, बातां इण मुखड़ा सूं।
फूला वाली परमाल छोड़, अमर होई जावांला।।
लेणो वे तो ले लो नी, लावो इण हाथां सूं।
करलो भलाई वाला काम, जगत जस पावांला।।
मिलणो वे तो मिललो रे, जगत का ईं मिनखां सूं।
यो मेलो बिछड्यो जाय, फेर पछतावांला।।
गाणा वे तो गा लो रे, गुरूजी वाला गीतड़ला।
भैरव भज मन राम, अमर पद पावांला।।
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