कलश माँहि कला, नेजे रे माँहि
दोहा:- हालो हरजी देवरे, ने मिलसी रामापीर।
दुखियाँ ने सुखियाँ करे, बाबो साजा करे शरीर।।
स्थाई:- कलश माँहि कला, नेजे रे माँहि नूर।
देवरा में ऊभो बाबो, हाथ रो हुजूर, जियो पीरां जियो रे।।
भाखर मसूरिये, गुंसाई जी रो धाम।
जातरू आवे बाबा, घोड़ा री घमसाण।।
पाँच पीपलियाँ रोपी, पाँचू मक्का रा पीर।
चौपड़ खेले बाई, सुगणा रो बीर।।
राम सरोवर पाल माथे, मीठा बोले मोर।
जातरू आवे ओ बाबा, नेजा वाळी डोर।।
लुम्बड़िया नारेळ चाढ़ूं, पावड़ियाँ री नाल।
दोय कर जोड़ बोले, मानो मेघवाळ।।
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