ले ले सुआ हरी नाम
दोहा:- सुत दारा अरु लक्ष्मी, पापी गृह भी होय।
संत समागम हरि कथा, तुलसी दुर्लभ दोय।
स्थाई:- ले ले सुआ हरी नाम, नाम लियां तिर जासी।
भज पंछी भगवान, वासना रह जासी।
सगो नहीं संसार, काया थारी है काची।
ले ले सुआ हरी नाम, नाम लियां तिर जासी।।
सिंवरूँ शारदा मात, शारदा तू साँची।
लागूं गुरूजी रे पाँव, गुरु पोथी बाची।।
ले ले सुआ हरी नाम, नाम लियां तिर जासी।।
कुण थारा माँयर बाप, कुण थारो संग साथी।
कुण देला आदर भाव, कुण आगो लेसी।।
ले ले सुआ हरी नाम, नाम लियां तिर जासी।।
सत म्हारो माँयर बाप, धरम म्हारो संग साथी।
गुरु देला आदर भाव, अलख आगो लेसी।।
ले ले सुआ हरी नाम, नाम लियां तिर जासी।।
सौ मण उलझ्यो सूत, सूत कुण सुलझासी।
गुरु म्हारा चतुर सुजाण, जुगत कर सुलझासी।।
ले ले सुआ हरी नाम, नाम लियां तिर जासी।।
माटी री गिणगौर, गागरो घमकासी।
ओढ़ण दिखणी रो चिर, शहर में राम जासी।।
ले ले सुआ हरी नाम, नाम लियां तिर जासी।।
बोल्या पूरणदास गुरु मिल्या रविदास जी।
बैठा है आसन ढाल, भजन में लिव लागी।।
ले ले सुआ हरी नाम, नाम लियां तिर जासी।।
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