Kalap Math Kachab Kudi Bhajan कळप मत काछब कूड़ी रे

कळप मत काछब कूड़ी रे..... 

स्थाई:- काछबो ने काछबी रेहता रे जल में, लेता हरि रो नाम। 
भगती रे कारण बाहर आया, कीना संती ने प्रणाम। 
संतो रे शरणे पड़िया जी, झटक झोली में धरिया जी।
कळप मत काछब कूड़ी रे, सांवरा री रीतो रूड़ी रे। 
भगती रो भेद नी पायो रे, सांवरा नेछे आयो राम।।

संत ले होण्ड़ी में धारिया, तले रे लगाईं आग। 
केवे काछबी सुण रे काछबा, थारो हरी बताय। 
कठे थारो साळग प्राणी रे, मौत री आई निशाणी रे।

ऊभी बळूं में आडी बळूं में, मिल गई झालो झाल। 
अजे नी सांवरो आवियो रे, म्हारो प्राण निकल्यो जाय। 
कठे थारो मोहन प्यारो रे, मीठोड़ी मुरली वाळो रे।

बळती वे तो बैठ पीठ पर, राखूं थारो प्राण। 
निंदरा मत कर म्हारे श्याम री , राखूं थारे प्राण। 
हरी म्हारो आसी वारुं, जीवो ने तारण सारू रे। 

उत्तर दिशा में उठी वादली, झीणी वाजे वाव। 
तीन पान री उडी झूंपड़ी, उडी आकाशों जाय।  
घमाघम इन्दर गाजे रे, पाणी री पोठों बाजे रे।

काची नींद में सूतों सांवरो, मोड़ी सुणी रे पुकार। 
बळती अगन में तार दिया जी, काछब ने किरतार। 
वाणी भोजोजी गावे रे, टीकम दास गाय सुणावे रे।
                    ⚝⚝⚝⚝⚝

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