दोहा : गुरु की कीजे बंदगी ,दिन में सौ - सौ बार।
काग पलट हंसा किया ,करत न लागी वार।।
स्थाई : सतगुरु पारस खान हे ,लोहा जुग सारा।
टुक इक
पारस संग रमे ,होते कंचन तन सारा।
ऐसो सतवादी मारो सायबो ,उपजेला
ब्रह्म ज्ञान।
ऐसो सतवादी मारो सायबो।।
इण शबदा में म्हारो मन बस्यो,ठंडा नीर
अथागा।
चबकी मारी गुरु रे नाम री,कण लाया
ततसारा।।
समदो रा सौदागिरी ,हिरा
-हिरा गुण भरेवा।
साध मिले सोदा करे ,मूंगे
मोल बिकेवा।।
सीप समद में रहत हे,समदर का
क्या लीजे।
बूंद पड़े आसोज री ,शोभा
समदरिया ने दीजे।।
सतिया धरम ने झेलना ,भव जल
उतरो पारा।
शेख फरीद री वीनति,जुग -
जुग दास तुम्हारा।।
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